Wednesday, January 26, 2022

इतने अर्से बाद

रोशनदानों से कबूतर, फड़फड़ा कर उडे होंगे फर्श की असली सतह अब दिखी होगी दूर लिखी इबारत अब साफ नजर आई होगी सब कुछ अलग सा दिखा होगा, इतने अर्से बाद


वहां से विमान उठे होंगे, वहां से साहिल हटे होंगे
लोगों का हुजूम फिर एक लकीर पर चला होगा
जो पर्दे में था अब तक, पता नहीं, था बाहर या अंदर
दिखा तो नहीं पर एक गुमां सा है, इतने अर्से बाद।

ये मोहब्बत की बातें, और बातों का जंजाल
ये अपने होते हुए भी उलझते हुए से बाल
इतना कुछ है जो है पर शायद अपना है नहीं
उससे रूबरू हुए हैं, इतने अर्से बाद।

आसमान ने खोल दिए हैं अंतरिक्ष के द्वार
मद्धम नाद में, हलकी आंच में
रूह से बेरूह तक बिखर गया जो,
सृजन समारोह, इतने अर्से बाद।

सिमटे कदमों से, सहमे लफ़्ज़ों से
कुछ कह पाऊँगा, कुछ भूल जाऊँगा,
कुछ जान पाऊँगा कुछ भी ना चाहूँगा,
जो कुछ रहेगा, जो कुछ बहेगा,
तेरा ही होगा,
जो बस में होगा, और जो नहीं,
इतने अर्से बाद।
- मनोज कोठारी

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