जो गुजर गया, कोहराम था,
जो बसर हुआ, तेरा ही नाम था,
यूँ हर तरफ थे रास्ते, कि हर तरफ थी मंज़िलें
बाहर उफनते जलजले और भीतर बियाबान था
जो मिले थे दो कदम, वो चले भी साथ दो कदम,
रह रह कर पूछते मुझे, आशियाँ की दास्ताँ,
दुश्मनो कि दास्ताँ, दोस्त की नादानियाँ
हर दो कदम था आशियाँ, हर दो कदम घमासान था
यूँ नहीं कि डर गया, और कुछ भी किया नहीं,
ये किया कि वो किया, और वो भी जो वजह नहीं,
हर कदम हयात से अड़ा, गफलतों का रहनुमां
कब का दिल निकल गया, सांस को पता नहीं
अरमान ही थे अमानत , बमुश्किल आज़ाद रहे,
साहिल लगा की पास है, पर हर मौज़ हम नाशाद रहे,
मिले किसी से जो अगर, मिल कर के हम यूँ हंस दिए
कुछ लम्हे ही सही, क्यूँ न दिल आबाद रहे!
अब तो सेहर है हो चली, उफक पे लाली लाल है,
कदम अभी तक हैं थके हुए,पर बदली हुई सी चाल है,
नहीं कि जलजले थम गए, और बादल कभी न आयेंगे,
बस ये कि पयाम मिल गया, और सुलग गयी मशाल है.
ये लौ फिर से लाल है, अँधेरे मिट ही जाएंगे
संग की अब फिक्र किसे, कभी पिघल ही जाएंगे
कोहरा हट ही जाएगा, रस्ते संवर ही जाएंगे,
तेरे नाम से ये हाल है , मिल कर क्या न कर जाएंगे !