Monday, July 29, 2013

Monsoon Phir!!

हवा में नमी नमी रही ,
फिजां कुछ दबी दबी रही,
दिनों में दिन सिमट गए,
सहमे, रातों से लिपट गए।

जो नेकियों की सांस थी
कब तलक रहेगी साथ
जो तल्खियों की आग थी
वो धधक के कर रही थी बात

कदम कदम पे शोर था,
ज़ेहन ज़ेहन में शोर था,
गली अपनी थी शांत शांत
और हर मोड़ पे चोर था

इंसान सब बदल गए
अरमान भी बदल गए
जो जमीं पे रहे, रहे दफ़न
कि आसमान तक बदल गये.

एक हवा चली थी याद है,
एक शमा जली थी याद है,
कुछ खास नहीं, नहीं खास,
पर थी भली सी, याद है.

वो मिले भी तो भर झलक
बात  चली भी तो भर पलक
नूर नूर जेहन हुआ
नूर नूर जहाँ तलक

मन की सिमटी खुली थी  चादर
सुर्ख सा रेगिस्तान हुआ तरातर
लहेरों से लडती वजूद की कश्ती
साहिल बन गयी बीच समंदर।

सिर्फ मिलन नहीं था सब कुछ
कहीं तो रूहों का कलरव था,
बरसों भरते बादल दल का
मिलन तो  संघनन उत्सव था

अब वही नम शाम है
नाम जो था गुमनाम है
जिसके लिए था लहू जिगर
किस कदर सरे  आम है.

जो मिला, बरस गया,
जो रहा, वो तरस गया
सिलसिले यूँ हो गए
रूह रही पर रस गया !







 

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