तकदीर के दरया में मकाम नए आये हैं
सर्द सियाह रातों में दोस्त बने साए हैं
अब तक थी रूह बड़ी हैरां - ओ -परेशान
आवाज़ तलक बंद थी, कहाँ साज और सामान
ख्वाब जो दिल में मेंने रखे थे छुपा कर
उन ख़्वाबों से महकी मेरी शर्मीली शमाएं हैं ।
तेरी फितरत से न थी फ़ुर्सत तुझे मेरे मालिक
मेरी कोशिशें शायद न थीं बयान के काबिल
मेरी बंदगी न बनी शायद तेरी वफ़ा के काबिल
ऐ खुदा अब तू जो थोड़ा मुस्काया है।
मेरा खोया हुआ वजूद मेंने पाया है
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