Sunday, August 16, 2009

तकदीर के दरया में मकाम नए आये हैं

सर्द सियाह रातों में दोस्त बने साए हैं

अब तक थी रूह बड़ी हैरां - ओ -परेशान

आवाज़ तलक बंद थी, कहाँ साज और सामान

ख्वाब जो दिल में मेंने रखे थे छुपा कर

उन ख़्वाबों से महकी मेरी शर्मीली शमाएं हैं ।

तेरी फितरत से न थी फ़ुर्सत तुझे मेरे मालिक

मेरी कोशिशें शायद न थीं बयान के काबिल

मेरी बंदगी न बनी शायद तेरी वफ़ा के काबिल

ऐ खुदा अब तू जो थोड़ा मुस्काया है।

मेरा खोया हुआ वजूद मेंने पाया है

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