Saturday, January 12, 2008

More

तेरी एक दृष्टि पड़ेगी करुणामयी,
रामकृष्ण बन जाएगा
जो रात दिन रोएगा, माँ माँ चिल्लाएगा ,
गली गली सोएगा, पगला जाएगा,
दिनों-दिन पूजा करेगा, ठोकरें खाएगा,
छत पर जा कर 'तुम कब आओगे' गाएगा
मष्तिष्क सुन्न हो जाएगा और संसाआर बधिर बन जाएगा
क्या तब तुम आओगे?
अंतरतम में बजेगी वीणा,
बाह्य स्थिर हो जाएगा,
अपने जन्म से सृष्टि के प्रारंभ तक,
प्रज्ञा के हर प्रकाश्मायी प्रसंग तक,
जब वो तेरा आव्हान करेगा,
अगिनत आत्माओं को छूकर ,
खुद जब वो पानी हो जाएगा,
क्या तब तुम आओगे?

जब ध्यान, प्रश्न रहित होगा,
जब ज्ञान वस्तु रहित हो जाएगा,
अस्तित्व कि परिभाषाएँ जब बदलेंगी
तत्त्व निर्गुण हो जाएगा ,
हज़ारों कबीर पैदा होकर,
लाखों मीरा तेरा नाम गाकर
मिटटी हो जाएंगी
शायद तब तुम आओगे

No comments: