Sunday, January 13, 2008

मधु १

हे मधुरिमा,
तुम मुझ पर एहसान हो सृष्टिकर्ता का,
जो मेरी कविताएँ चुकाएंगी।
तुम्हारा प्यार मुझे लील लेगा,
इसका भय है मुझको,
तुम्हारे प्यार में कविता का जन्म ,
मुश्किल तो नही होगा, पर उसमें दर्द रहित स्वर होंगे,
जो पहले कई बार दोहराए गए होंगे।

ओ मधुरिमा,
तुम आंसू कि एक बूँद हो जो,
मेरे गालों से चिपटी हो,
(दोनों) असहाय हैं,
एक दुसरे के साथ।

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