अपना मिलन अभी दूर है,
मन मद में चूर है,
शाम गहराती जाती है ,
अजीब सी उमस है,
कभी भीड़ तो कभी तन्हाई सताती है
कभी कभी अनायास
मंदिर से भजनों की गूँज सुने देती है,
कभी यकायक तेरी नज़र से
मेरी नज़र मिल जाती है
मैं कुछ बोल नही पाता हूँ ,
कितने फासले हैं अभी तक,
कितनी तीव्रता है तेरी नज़र में,
कितना असहाय और बेबस हूँ मैं ,
कबसे इंतज़ार में जागता हूँ
और इसी आशा में सोता हूँ,
कब तेरे जलजले आएंगे ,
और मुझे बहा ले जाएँगे,
पटक देंगे मुझे मीरा के पूजा स्थल पर,
या तुकाराम के पन्द्धारपुर में,
या फ़ेंक देंगे मुझे आलंदी के जंगलों में,
जहाँ में झोली में पत्थर बीन कर,
तेरे मंदिर में फेंकुंगा ,
और फूट फूट कर रोऊंगा,
कैसा पागलपन होगा वो,
कैसा प्रेम होगा वो,
शायद मैं तुझे फिर
नज़र नहीं मिल पाऊं
तेरे चरणों में जगह ज़रूर
बना लूँगा
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