हे मधुरिमा,
तुमने मेरे मन के अँधेरे और उजाले देखें हैं,
मेरे मन के आवेग और संताप को जाना है,
हृदय में बहती चिर यौवनी प्रेम सुधा को पिया है,
मेरे मष्तिष्क कि तीन रंगी धारियों को छुआ है,
मंदिर में जब सब नाच रहे थे,
सिर्फ तुमने मुझे रोते देखा है,
जब में खुद को ढूंढ रहा था,
तुमने मुझको पाया है।
तुम मेरा देव हो प्रिये,
मेरा अस्तित्व तुम्हारा चढावा है,
मुझ हिम शिवलिंग पर,
उष्ण गंगा बनकर उतरो,
बह जाने दो वो सब, जो अस्थिर है।
चिर काल के हृदय में,
शंख धवनी के साथ जब,
मैं जब नया जन्म लूंगा,
माँ, तो तुम ही होगी मधुरिमा।
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